महान परम्परा को आगे बढ़ा रहा परिवार,पौत्र गौरव गोयल ने मेयर रहते दान की लाखों की भूमि…
रुड़की(संदीप तोमर)।
6 अक्टूबर इतिहास के पन्नों में उस महामानव की स्मृति में दर्ज है,जिसने अपने कर्म,करुणा और कर्तव्यनिष्ठा से इस शहर को पहचान दी। आज रुड़की के उद्योग,व्यापार,समाजसेवा और राजनीति के आधार स्तंभ रहे स्व. लाला सेठ केदारनाथ गोयल की जयंती और पुण्यतिथि – दोनों ही अवसर हैं।6 अक्टूबर 1906 को जन्मे और 6 अक्टूबर 1980 को इस दुनिया को अलविदा कहने वाले सेठ केदारनाथ गोयल की गाथा रुड़की के विकास,शिक्षा,उद्योग और परोपकार के स्वर्णिम अध्याय के रूप में अमर है।
पनियाला गांव से मंगलौर होते हुए रुड़की तक उनका परिवार व्यापार और समाजसेवा की मिसाल बना। उन्होंने रुड़की टाकीज,ज्वालापुर में अशोका टाकीज और देवबंद में सिनेमा हॉल स्थापित कर मनोरंजन के क्षेत्र में कदम रखा। वहीं उद्योग जगत में देश की दूसरी प्लाईवुड फैक्ट्री “यूनाइटेड टिंबर एंड प्लाईवुड” स्थापित की।
शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका योगदान अतुलनीय रहा। मंगलौर के नेहरू नेशनल इंटर कॉलेज (1943) और रामपुर के लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय के निर्माण में उनकी भूमिका ऐतिहासिक रही।
धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में योगदान के अंतर्गत उन्होंने काली माता मंदिर,शिव मंदिर और आर्य समाज व्यायामशाला के लिए भूमि दान दी। यही नहीं,उन्होंने स्टेशन क्लब और आर्य उपवन के लिए भी ज़मीन दी,जिससे शहर में सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को बल मिला।
ब्रिटिश काल में 1925 के दौरान उनकी बैंक फर्म द्वारा जारी सिक्के पूरे सहारनपुर ज़िले में चलन में रहे,जो उनकी वित्तीय साख और प्रभाव का प्रमाण हैं।
नगर निकाय राजनीति में भी वे अग्रणी रहे। रुड़की नगर पालिका के पहले बोर्ड(1951) में सभासद/उपाध्यक्ष के रूप में उनका योगदान आज भी नगर निगम भवन के शिलापट्ट पर दर्ज है।
उनकी महान परंपरा को आगे बढ़ाते हुए परिवार आज भी समाजसेवा में अग्रणी है। 2022 में मेयर रहते उनके पौत्र गौरव गोयल ने अपने जन्मदिन पर सोलानी नदी श्मशान घाट समिति को लाखों की भूमि दान कर इस विरासत को जीवित रखा।
6 अक्टूबर – एक दिन,दो अर्थ:
जन्म और अवसान दोनों ही दिन एक ही तारीख को आना इस बात का प्रतीक है कि महापुरुष समय से नहीं,अपने कार्यों से जाने जाते हैं। सेठ केदारनाथ गोयल ने जिस समर्पण से रुड़की के विकास में योगदान दिया,वह आज भी शहर के हर कोने में महसूस किया जा सकता है।
आज उनके स्मृति दिवस पर रुड़की शहर उन्हें बारंबार नमन करता है।
